शुक्रवार, 14 नवंबर 2008

हम तो आहत हैं...

दुनियाभर को सहिष्णुता का संदेश देने वाले भारत में सेना और साधु-संतों के आतंकवाद के घिनौने कृत्य में संलिप्तता के सबूत मिलने से प्रत्येक व्यक्ति आहत है। रोज-रोज हो रहे नए खुलासे सोचने को मजबूर कर रहे हैं। लेकिन क्या सोचेंगे। देश की जनता अभी तक उन मठाधीशों की ही असलियत नहीं जान पाई है,जो जाति और धर्म के नाम पर बरसों-बरस से लोगों को छल रहे हैं। धर्म को तथाकथित ठेकेदारों ने अपना बंधक बना लिया है। रूप अलग-अलग हैं, लेकिन इन्हें नेताओं का भरपूर प्रश्रय मिला हुआ है। आज साध्वी प्रज्ञा,स्वामी अमृतानंद उर्फ दयानंद पांडेय उर्फ सुधाकर द्विवेदी का नाम सामने आ गया है,तो फिर से चर्चाएं चलने लगी हैं, लेकिन कितने दिन चलेंगी। विधानसभा चुनाव हो जाने दीजिए। यह खत्म हो जाएगा। छह दिसंबर,1992 और क्या उससे पहले इसकी बुनियाद नहीं पड़ गई थी। मंडल आयोग की सिफारिशों ने हिंदुओं के बीच कलह नहीं बढ़ाई थी। आज की अधेड़ पीढ़ी तब युवा थी। उसने जाति-धर्म की दीवारों को काफी हद तक तोड़ दिया था। उसके दिमाग में दलित और सवर्ण को अलग- अलग करने की बातें कम ही आती थीं। इन सबके पीछे राजनीतिज्ञ थे, सो हर आदमी उसी के हिसाब से तर्क कम कुतर्क ज्यादा देने लगा। विचार करके देखिए। यह राजनीतिक बात है। देश में उसके बाद से ही बहुजन समाज पार्टी का दबदबा बढ़ता है और वामपंथी हाशिए पर चले जाते हैं। ताज्जुब की बात है। इस पर फायरब्रांड प्रवीण तोगड़िया जी चुप्पी साधे हुए हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस पर अपनी बात नहीं कह रहे हैं। जम्मू कश्मीर में भी नब्बे के दशक में आतंकवाद तब बढ़ा, जब मौलाना और मौलवी ही नहीं, धर्मगुरु भी वहां के आवाम को उकसाने लगे। कितने लोग जानते हैं कि जम्मू कश्मीर में सबसे पहले भूमि सुधार कानून लागू किए गए। सबसे ज्यादा सेक्युलर राज्यों में उसकी गिनती होती है। कश्मीर में मुसलिम समाज की प्रगतिशील सोच देखिए कि वहां एक से अधिक शादियों को अच्छा नहीं माना जाता। दक्षिण भारत के एक शंकराचार्य पर हत्या का मुकदमा किस बात की ओर इशारा करता है। इतिहास गवाह है कि इस देश के नौजवानों को नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने यह कहकर ही एकजुट किया था कि तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। महात्मा गांधी से बड़ा सोशल इंजीनियर कौन हुआ है आज तक दुनिया में। संचार के गिने-चुने साधनों के बावजूद बापू की एक आवाज आदेश बन जाती थी। उस पर अमल होता था। चाहत तो आजादी की थी। आज भी जरूरत है आजादी की। एक नए किस्म की आजादी की। कारण, हिंदू समाज को बसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवंतु सुखिना, सर्वे संतु निरामया की सोच को सार्थक करना है।

4 टिप्‍पणियां:

Kamlesh Bhatt ने कहा…

आपका ब्लॉग देखा। अच्छा लगा। एक-दूसरे से विचार साझा करने से कुछ निकल सकता है।

Kamlesh Bhatt ने कहा…

आपका ब्लाग देखा। अच्छा लगा।

Kamlesh Bhatt ने कहा…

ब्‍लाग अच्‍छा है.

naresh singh ने कहा…

मिश्रा जी आप की चिन्ता जायज है,सच्चा हिन्दु वही है जो देश भक्त है देशद्रोही हिन्दु नही हो सकता है