बुधवार, 7 जनवरी 2009
अब तो सबक ले लो...
मंदी के दौर में सत्यम कंप्यूटर्स का असत्य सबके सामने है। सामने है औसत भारतीय नागरिक की वह इच्छा, जिसमें वह काम किए बगैर अधिकतम पैसा पाने की इच्छा पाल लेता है। संतोषी सदा सुखी की सीख लुप्तप्रायः हो गई है। लॉटरी के खेल ने हमारी कर्मठता और मेहनतकश होने की भावना को चिंदी-चिंदी कर दिया है। लॉटरी से लाखों-करोड़ों घर तबाह हुए, तो इस पर पाबंदी लग गई। ये मामला थोड़ा कानूनी था। सट्टे पर आज भी कोई रोक नहीं है। लोग सट्टा खेल रहे हैं और दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की के चक्कर में हैसियत के हिसाब से गंवा रहे हैं। लाटरी बंद होते-होते और आर्थिक उदारीकरण शुरू होने पर हमारे देश में खुली अर्थव्यवस्था लागू हो गई। नब्बे के दशक में लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई निजी फाइनेंस कंपनियों में लगा दी। वहां बैंकों से ज्यादा ब्याज के सब्जबाग दिखाए गए थे। तब आदमी बैंकों-पोस्ट आफिस में पैसा जमा करना अपनी तौहीन समझने लगा था। उसे उसके मोहल्ले की कोई न कोई फाइनेंस कंपनी अपने झांसे में ले ही लेती थी। जब फाइनेंस कंपनियों का जाल-बट्टा सामने आया, तब उसे कुछ वक्त के लिए बैंक अच्छे लगने लगे। लेकिन कहते हैं कि जानकारी हुए बगैर कोई काम करना ज्यादा घातक साबित होता है। सो कुछ ही समय बाद मुफ्त-ए-माल, दिल-ए-बेरहम का अनुसरण करते हुए अधिकांश लोग शेयर बाजार में अपना पैसा लगाने लगे। दावे के साथ कहा जा सकता है कि इनमें से तमाम लोगों को सेंसेक्स, बीएसई, निफ्टी के बारे में भी पता नहीं है। फ्रेंचाइजी, एजेंट ने उसे ग्राहक से इनवेस्टर होने के रुतबे के बारे में बता दिया। उसे बताया गया कि वह रिलायंस के शेयर खरीदकर अंबानी हो सकता है। यह नहीं समझाया गया कि धीरूभाई अंबानी ने रिलांयस को खड़ा करने के लिए क्या-क्या पापड़ बेले थे। उसे टाटा और बिड़ला की कतार में खडें होने के सपने दिखाए गए, पर यह नहीं बताया गया कि इन कपनियों के ही नहीं, अन्य कंपनियों के शेयर खरीदने से पहले उसकी माली हालत जानने के लिए उसकी भी कोई जिम्मेदारी बनती है। वह तो रातोंरात लखपति बनना चाहता था। हर्षद मेहता, केतन पारिख और तेलगी को इन्हीं कमजोरियों का लाभ मिला। हालांकि इनं कुख्यात नामवरों ने भारत के कारपोरेट और बैंकिंग सेक्टर की खामियों को भी सामने ला दिया। पर क्या फर्क पड़ता है उन निवेशकों पर, जिनकी बरसों-बरस की कमाई डूब गई। सत्यम के खुलासे से साबित हो गया कि निवेशक भेड़चाल में शामिल न हों। उसकी ज्यादा लाभ पाने की इच्छा अपनी जगह है। इससे भी ज्यादा आवश्यक है कि उसे किसी अपरिचित के बहकावे में आकंर जल्दबाजी में निवेश करने से बचना चाहिए। निवेशकों को मेहनत की कमाई को कहीं, खासतौर से शेयर बाजार में लगाने से पहले याद रखना चाहिए कि एक चेहरे में कई चेहरे छिपे हैं और चेहरों में छिपा है आदमी।
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