शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

बच्चों को बताना ही पड़ेगा...

जैसे व्यस्त मार्गो पर आए दिन सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। आतंकी घटनाएं भी ऐसी ही होने लगी हैं। रेल हादसे जरूर कम हुए है। जब होते हैं, तो दर्जनों लोग काल-कलवित होते हैं। सड़क हादसों की प्रमुख वजह क्या है। अब हर आदमी की हैसियत वाहन खरीदने की है। घर का कोई बढ़ा जब दो पहिया से चार पहिया पर आता है। दो पहिया पर बच्चों की ट्रेनिंग व्हीकल हो जाता है। दुस्साहस दिखाते हुए यही बच्चे अस्पताल पहुच जाते हैं। सड़कों पर दुर्घटनाओं का अनुपात बढ़ गया है। एक बार तो रपट आई थी कि इस तरह से काल के गाल में समाने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसको ध्यान में रखते हुए ट्रैफिक और इसके रूल्स-रेगुलेशन को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया। बच्चों को इसके बारे में स्कूल-कालेज जाकर भी बताया जाने लगा है।
करीब डेढ़ दशक से ओजोन परत में छेद, ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण के बारे में भी बच्चे किसी भी आम नागरिक से ज्यादा जानने लगे हैं। ये जाररूकता बच्चों में इसलिए आ पाई, क्योंकि उन्हें पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने की प्रेरणा पूरे मनोयोग से दी गई। शिक्षकों ने उन्हें पर्यावरण के हर पहलू से से बकायदा परिचित कराया गया। हम भले ही पालीथिन का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं, पर हमारे बच्चों को इससे होने वाले नुकसानों के बारे में सब कुछ पता है। प्राइमरी के बाद के विद्यार्थियों को सेक्स एजूकेशन दिए जाने पर थोड़ी-बहुत ना-नुकर के बाद करीब-करीब सहमति बन रही है।
ऐसे में जरूरी हो जाता है। टीवी पर मुंबई की लाइव मुठभेड़ और कमांडो कार्रवाई देख रहे नौनिहालों को आतंकवाद पर उसी तरह से बताया जाए, जैसे हम इतिहास को पढ़ाते हैं। बच्चों को बताना होगा कि अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और ब्रिटेन के मेट्रो रेलवे पर हमले किस नापाक मकसद के लिए किए गए थे। उनके लिए यह जानना भी बेहद जरूरी होगा कि 1993 में मुंबई में पहली बार हुए सीरियल बम ब्लास्ट के पीछे हमारी क्या खामियां रही थीं। इन्हें हम आज तक शायद दुरुस्त नहीं कर पाए हैं। 1999 में हमें किन हालात में अजहर मसूद को जम्मू जेल से रिहा कराने के बाद तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने कंधार ले जाकर छोड़ा था। हो सके तो यह भी बताया जाए कि मालेगांव विस्फोट में हिंदू आतंकियों और सेना की क्या भूमिका थी।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

kya baat hai