राजनीति में कुछ भी हो सकता है। कोई सोच भी नहीं सकता था कि ठाकुर अमर सिंह और समाजवादी पार्टी के आल-इन आल मुलायम सिंह में कभी खटास आएगी। लेकिन अमर सिंह के जन्मदिन पर टकराव शुरू हो गया है। फिल्मी गांनों और शेर-ओ-शायरी को अपने तर्कों-कुतर्कों और वितर्कों में शामिल करने वाले अमर सिंह मन ही मन कह रहे होंगे कि दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है।
वजह यह नहीं है कि मुलायम से उनकी दोस्ती टूट गई है। वजह यह है कि अभी तक उनके आदरणीय नेताजी ने उनसे राज्यसभा सदस्यता के बारे में कुछ नहीं कहा। उलटे उनके सिपहसालार मोहन सिंह ने प्रवक्ता बनते ही अमर सिंह को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने की नसीहत दे डाली। अमर सिंह को बताया जा रहा है कि पार्टी छोड़ने के बाद राज्यसभा में बने रहना अनैतिक है। वक्त-वक्त की बात है। कभी सपा में सिर्फ अमर सिंह ही बोलते थे। वह जो भी बोलते थे उसे पार्टी के लोग मानते थे और दूसरे दलों के नेता उस पर प्रतिक्रया देते थे। कुछ ही दिन में हालत यह हो गई कि अमर सिंह को दी गई सलाह, उन पर लगाए गए आरोपों के बारे में उन्हें खुद सफाई देनी पड़ रही है। अपने किस्सों, अपने रिश्तों, अपने पुराने और नए समर्थकों के बारे में जानकारियां और राय अपने ब्लाग पर दे रहे हैं। ब्लाग अंतरराष्ट्ीय मंच है, सो उस पर टिप्पणियां भी खूब आती हैं। यह अलग बात है कि इन टिप्पणियों में वह तबका शामिल नहीं है, ठाकुर अमर सिंह जिसे एकजुट करने की वकालत कर रहे हैं। ठाकुर साहब अभी भी कह रहे हैं कि वह नेता जी यानी मुलायम सिंह यादव के राज नहीं खोलेंगे। इसे क्या माना जाए कि कभी धरतीपुत्र कहे जाने वाले मुलायम सिंह षडयंत्रकारी भी रहे हैं। अमर सिंह कह रहे हैं कि मुलायम परिवारवादी हैं, लेकिन वह इसमें उनके सांसद पुत्र अखिलेश यादव को शामिल नहीं कर रहे हैं। वह उनकी तारीफ-दर-तारीफ कर रहे हैं। अमर सिंह अखिलेश की तारीफ करते समय शायद यह याद नहीं करते कि मुलायम सिंह यादव की उन्होंने कैसे और क्यों फिल्म स्टारों और उद्योगपतियों में घुसपैठ कराई थी। जमीन से उठाकर उन्हें हवाई नेता बनाने के लिए उन्होंने क्या किया था। भारत माता को डायन कहने वाले आजम खान को उन्होंने नेता जी से क्यों दूर कर दिया। कल्याण सिंह के बारे में अमर सिंह सफाई दे चुके हैं। जनेश्वर मिश्र को श्रद्धांजलि देते हुए उनको नमन कर चुके हैं। रामगोपाल के बारे में वह चुप्पी साध जाते हैं। बावजूद इसके सपा के दायरे को बढ़ाने के लिए रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को पार्टी का समर्थन देने और इस पर होने वाली किरकरी को झेलने के अलावा और भी हैं तमाम सवाल हैं और इनका जवाब ठाकुर साहब ही दे सकते हैं।
मूलत अध्यापक मुलायम सिंह के प्रति आस्था रखने वालों को यह समझ में नहीं आता कि उन्होंने रहीम को नहीं पढ़ा होगा। रहीम ने ही कहा था रहिमन देख बडे़न को लघु न दीजिए डार, जहां काम आबै सुई कहा करै तलवार। तलवार से तिलक कराने चले थे मुलायम सिंह। उन्हें यह तो सोचना चाहिए था कि अब सामंतशाही नहीं है। वोटर प्रजा नहीं रह गया है। फिल्मी कलाकारों के लटके-झटके वह अपने घर के टीवी पर भी देख लेता है। सामने कोई मुन्ना भाई आ जाता है तो वह उसे देख लेता है। वोट वह उसे देता है, जो उसके पारिवारिक आयोजनों में शामिल होता है। उन्हें दुख के मौके पर सांत्वना देता है। उससे उसका कोई मतलब नहीं होता, जो सरकार बनने पर झंडे बदलकर डग्गेमारी और ठेकेदारी करते हैं। उनसे वह दिल से नफरत करता है, जो जातीय आधार पर उत्पीड़न करते हैं। मुलायम क्यों नहीं मान लेते कि उनकी पार्टी प्रांतीय है। स्वर्गीय रामशरण दास निजी बातचीत में कहते थे कि वह राष्ट्ीय पार्टी के प्रांतीय अध्यक हैं और मुलायम सिंह प्रांतीय पार्टी के राष्ट्ीय अध्यक हैं।
गुरुवार, 28 जनवरी 2010
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