एनडीटीवी के रवीश कुमार ने आज के हिन्दुस्तान में ब्लागर योगेश जादौन के ब्लाग बीहड़ के बारे में विस्तार से चर्चा की है। नहीं जानते जादौन साहब को। अरे वही, जो आजकल अमर उजाला आगरा में हैं। अपने ब्लाग पर वह छक्के लगाने से पहले नामी-गिरामी अखबारों के साथ जुड़े रहकर सिक्का जमा चुके हैं। डकैत-बदमाशों के बारे में लिखते-लिखते शरीफ जादौन साहब भी कुख्यात हो गए हैं। कहते हैं न- बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा। मुझे तो ब्लाग का ककहरा जादौन साहब ने ही सिखाया है। आप उन्हें बधाई देने से पहले उनके ब्लाग का एक चक्कर लगा लीजिए। फिर रवीश जी का आलेख पढ़िए आज के दैनिक हिन्दुस्तान में।
लगे हाथ मेरी मिट्टी के तेल के कारोबार से संबंधित चंद लाइनों पर भी गौर फरमा लें- अगर न होता मिट्टी के तेल का कारोबार। कितने लोग मिट्टी में मिल गए होते। मिट्टी के तेल के दाम मिट्टी से भी ज्यादा हैं। अधिकारी इन्हीं दामों का फायदा उठाते हैं। देश भर में डीलर बनाते हैं। बीपीएल कार्ड धारकों की यह मजबूरी है। वहां इससे ही रोटी बनना जरुरी है। इसकी एक और उपयोगिता है। पेट्रोल से इसकी प्रतियोगिता है। गरीब या अमीर महिला जब जान देती है या उसको जलाया जाता है। जलने-जलाने वाले मितव्ययी हो जाते हैं। वे पेट्रोल नहीं,केरोसिन आयल ही आजमाते हैं।
बुधवार, 25 फ़रवरी 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
प्रदीप जी, जब इतना कुछ जादौन के बारे में लिख मारा तो यह भी बता देते कि वह मेरे शागिर्द भी हैं, जैसे आप पुष्पेंद्र शर्मा के शागिर्द.
'गरीब या अमीर महिला जब जान देती है या उसको जलाया जाता है। जलने-जलाने वाले मितव्ययी हो जाते हैं। वे पेट्रोल नहीं,केरोसिन आयल ही आजमाते हैं।'
-इस व्यंग्य के लिए साधुवाद.
एक टिप्पणी भेजें