करीब एक महीने से ब्लाग से रिश्ता थोड़ा कमजोर पड़ गया था। वजह कुछ खास नहीं है। हां, इस दौरान मैंने अपनी कवितानुमा चंद लाइनें तलाश लीं। हालांकि कुछ जगह मैंने पढ़ रखा है कि जब आदमी कुछ और नहीं कर पाता है, तो कविता-कहानी लिखने लगता है। मैं इससे कभी सहमत नहीं हो पाया। बावजूद इसके इस मुद्दे पर बहस में मेरी रुचि नहीं है। मेरी मान्यता है कि सोचने और उसको लिखने से ज्यादा कठिन कोई काम नहीं है।
बहरहाल, लाइनों पर गौर फरमाएं-
अनवरत आते हैं नए विचार
करते हैं आपस में व्यभिचार
जब नहीं हो पाते हैं सहमत
किसी पर भी मढ़ते हैं तोहमत।
इससे मिलती-जुलती लाइनें कुछ इस तरह हैं-
अपने मन का सोचा दूरंदेशी लगता है
हर समस्या के निदान पर संदेशी लगता है
लेकिन अपना कुछ खोने का डर सताता है
यही मन झटके से बचने की राह बताता है
अब बात करते हैं उन शब्दों की जिनको कई लोग अपशब्द नहीं मानते। उनके चाटुकार कहते हैं कि यह तो उनके प्यार का स्टाइल है। संभवतः इसका कारण है-
कुछ सुनने को नहीं हम तैयार
हमे पशुओं से है बेहद प्यार
वजह, दिन-रात, चौबीस घंटे
हम खुद बार-बार वही होते हैं यार
तो बात गधे (कामकाजी और दुनियादरी वाले लोगों के बीच अति कामन शब्द) से शुरू करते हैं-
घर-बाहर जो हर जगह निष्ठा से बंधा होता है
बड़ों से छोटों तक की नजरों में गधा होता है
जब तक उसने कुछ को कहीं का नहीं छोड़ा
जमाना उसे नहीं मानता उसे घोड़ा
क्या करें, हमारे जैसे कई लोग एक से ही सधे हैं
इसलिए हम फिक्र नहीं करते कि हम गधे हैं
सुअर के बारे में मेरा मानना है-
हम मुंह जरूर मारते हैं इधर-उधर
बावजूद इसके नहीं पालते सुअर
क्योंकि सुअर का बच्चा प्यारा होता है
बड़ा सुअर तो पक्का आवारा होता है
अगर इन लाइनों पर लालित्य और साहित्य से वंचित मेरे जैसे व्यक्ति के बारे में आलोचना, प्रशंसा या फिर रस्मी टिप्पणियां आती हैं, तो अगली बार कुछ और पशुओं की बात करेंगे। लेकिन याद रखिए-जानवर घर-जंगल में रहते हैं, उनके क्या कहने
आदमियत खो गई, ताने पड़ रहे उसको सहने
मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009
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6 टिप्पणियां:
अछा लिखा है।प्रयोग अच्छा है।
हम मुंह जरूर मारते हैं इधर-उधर
बावजूद इसके नहीं पालते सुअर
क्योंकि सुअर का बच्चा प्यारा होता है
बड़ा सुअर तो पक्का आवारा होता है
आदमी की मानसिकता पर अच्छी चोट की है।आगे प्रतीक्षा रहेगी।
लगे रहिये!!
बढ़िया है, बधाई
wonderful!!!!!!! keep going...... this is new reveltion to me. by ur bloticles i know that u r a good writer but u r also a great poet. this article remindes me the letters written by galib- greatest urdu poet ever. in those letters u cannot differtiate whether its poetry or prose.the flow is same.
best wishes. you have to go a long way
घर-बाहर जो हर जगह निष्ठा से बंधा होता है
बड़ों से छोटों तक की नजरों में गधा होता है
-निष्ठावान की सही परिभाषा.
और उसकी त्रासदी -
जब तक उसने कुछ को कहीं का नहीं छोड़ा
जमाना उसे नहीं मानता उसे घोड़ा
i agree with parmjeet bali and hemant pandey. they have picked very pinching lines. these lines can be equted with those lines of great writer Mark Twine- "if you feed a hungry dog he will not bite you. this is the basic difference between man and dog."
this is the true setire i have ever read or gone through.
keep it up wishes.
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