रविवार, 28 दिसंबर 2008

युद्ध तो नहीं होगा, पर...

जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पाकिस्तान को एक और गम दे दिया है। मुंबई पर आतंकी हमले के कारण पहले से दुनिया के निशाने पर आ चुके पाकिस्तान के रियासत के आवाम ने 61 फीसदी से अधिक मतदान कर भारतीय लोकतंत्र के प्रति अपनी आस्था से अवगत करा दिया है। भारत ने बराक ओबामा की ओर से 20 जनवरी तक संयम बरतने का बयान दिलाकर महत्वपूर्ण कूटनीतिक बढ़त हासिल कर ली है। चीन का भी दबाव बढ़ा है। पाकिस्तान कितना भी हौव्वा खड़ा करे। यह तय है कि युद्ध नहीं होगा। जम्मू कश्मीर के चुनाव नतीजों ने दक्षिण एशिया में शांति बनाए रखने की कोशिश में लगी ताकतो को और मजबूत किया है। जम्मू कश्मीर में चुनाव में बिघ्न-बाधा डालने के लिए पाकिस्तान ने सभी तरह की साजिश की। सीमा पार से घुसपैठ की कोशिश कराई गई। नेपाल और बांग्लादेश के जरिए आए आतंकी जम्मू कश्मीर भी पहुंच गए। मुंबई पर हमले के समय भी वहां चुनावी प्रक्रिया चल रही थी। पाकिस्तान भारत के लोगों में लोकतंत्र के प्रति विश्वास को तोड़ना चाहता था। नापाक इरादों को कामयाबी नहीं ही मिलती है।
बहरहाल, अब महत्वपूर्ण बात यह कि केंद्र सरकार और कांग्रेस को वहां बनने वाली सरकार को लेकर पूरी गंभीरता बरतनी होगी। जरा सी चूक पूरे देश के लिए भारी पड़ेगी। वजह यह है कि वर्ष, 2002 के विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार वहां के आम लोगों का भरोसा बढ़ा था। इसका श्रेय उस समय के चुनाव आयोग के अधिकारियों को तो जाता ही है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की इस बड़े और शांतिपूर्ण आयोजन में शानदार भूमिका रही थी। इससे पहले वहां के लोग मानते-कहते थे कि चुनाव तो औपचारिकता के लिए कराए जाते हैं। मुख्यमंत्री कौन होगा (ज्यादातर डॉ. फारूक अब्दुल्ला)दिल्ली (केंद्र सकार) पहले ही तय कर लेती है। वाजपेयी साहब ने सब कुछ वहां की जनता पर ही छोड़ दिया था। त्रिशंकु विधानसभा और मिलीजुली सरकार बनी। जम्मू कश्मीर के तीनों खित्तों जम्मू, कश्मीर और लद्दाख का समुचित विकास हुआ। अमरनाथ श्राइन बोर्ड भूमि विवाद के कारण भाजपा को चुनावी लाभ हो गया है, तो कांग्रेस को जम्मू के मामलों में फैसला लेने में देरी का शिकार होना पड़ा। एक अहम फैसले पर स्टैंड न लेने से उसके द्वारा दो साल में कराए गए विकास कार्य पीछे हो गए। पीडीपी को घाटी में लाभ अपने स्टैंड के कारण ही मिला। चुनाव आयोग ने अपना काम बहुत अच्छे से पूरा किया है। अब कांग्रेस को सोचना होगा कि वह किसकी सरकार बनने देगी। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को यह मानना ही होगा कि लोगों ने उनको पहले जैसा ही मैनडेट देकर उनके और उनकी पाटिर्यों के बारे में अपनी राय साफ कर दी है। जम्मू कश्मीर की जनता का जनादेश अलगाववाद और आतंकवाद के खिलाफ है। पिछली सरकार के कार्यकाल में उसने विकास की बयार देखी है। आतंकवाद से लड़ने का उसका हौसला भी बढ़ा है। उ़डी-मुजफ्फराबाद और पुंछ-रावलाकोट सड़क मार्ग खुलने के बाद पार से यहां आए रिश्तेदारों से बातचीत के बाद तमाम लोगों लोगों ने आजादी के नारे से तौबा कर ली है।
रियासत के आवाम की इन भावनाओँ को निरादर-अनदेखी करना कांग्रेस के लिए एक और कलंक का कारण बनेगा। सात दशक पुरानी कश्मीर समस्या को लेकर तमाम आरोप झेल रही कांग्रेस के लिए एक आरोप को कम करने का समय है। पिछली बार चुनाव के बाद राष्ट्र हित में पीडीपी की सरकार बनवाने वालों में प्रधानमंत्री डॉ।मनमोहन सिंह की सबसे अहम भूमिका थी। अब फिर उनकी ही बारी है।

1 टिप्पणी:

bijnior district ने कहा…

आपकी बात बिलकुल सही है।युद्ध नही होगां वैसे युद्ध होना भी नही।