रविवार, 7 दिसंबर 2008

थोड़ा पालिटिकल हो जाए...

मुंबई पर हमलों के 11वें दिन भारत की कूटनीति सफल हो गई। 20 दिसंबर को नौकरी जाने से पहले जाते-जाते अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडालिजा राइस जाते-जाते हम पर एक और अहसान कर गईं। पाकिस्तान मान गया कि मुंबई के धमाकों को उनके आदमियों ने अंजाम दिया है। अब कार्रवाई क्या होगी, यह भारत ही नहीं पूरी दुनिया देखेगी। इधर, 26 नवंबर के बाद से भारत के लोगों के दुख, क्षोभ और गुस्से के कारण ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को जाना पड़ा। इन 11-12 दिनों में मुंबई के धमाको के साथ पाकिस्तान के नापाक इरादों और पीओके में चल रहे ट्रेनिंग कैंपों पर हमला बोलने को लेकर कमोवेश पूरे देश की एक राय रही। देशवासियों को इस हमले ने इस कदर झकझोर दिया कि कम होती महंगाई की दर उन्हें खुश नहीं कर पाई। पेट्रोल-डीजल के दाम में कमी किए जाने पर उनकी प्रतिक्रिया बहुत नरम रही। सदभावना के विस्तार के कारण छह दिसंबर भी तनाव मुक्त रहा। लेकिन कहते हैं कि चलने का नाम जिंदगी है। जिंदगी चल भी रही है।
मुंबई की धमक आठ दिसंबर से कम हो जाएगी। जिन चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए हैं। उनके नतीजे आएंगे। मध्य प्रेदश और छ्त्तीसगढ़ में भाजपा को वापसी की उम्मीद है। दिल्ली कांग्रेस के हाथ में रह सकती है। राजस्थान में ऊंट किसी करवट बैठ सकता है। नेता फिर बोलने लगेंगे। उनसे बुलवाया जाएगा। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं से पूछा जाएगा कि बसपा-सपा ने उनका क्या नुकसान किया जाएगा। वार्ड स्तर का नेता भी हार-जीत के लिए तर्क गढ़े़ हुए बैठा है। प्रवक्ता सैलून में जाकर टीवी चैनलों पर आने की तैयारी कर चुके हैं। नए सूट (शिवराज पाटिल का प्रचार ज्यादा हो गया था ) सिलाए जा चुके हैं। मानकर चलिए कि मुंबई के धमाकों के बाद बैकफुट पर आए नेता सोमवार से धमाके करने को तैयार हैं। कोई किसी की टोपी (हालांकि कोई नेता पहनता नहीं है। कपड़े भी फाड़े जाते हैं) उछालेंगे। जवाब में दूसरा उसके नेता के व्य़क्तित्व और कृतित्व पर सवाल खड़े कर देगा। कल से केंद्र की नई सरकार बनने लगेगी। नए गठबंधन बनने-बिगड़ने लगेंगे। सांप्रदायिक शक्तियों से मुकाबले की आड़ में सौदेबीजी शुरू हो जाएगी। मौकापरस्त नेता अपने-अपने मैदान छोड़ने का ऐलान करने लगेंगे। फ्रेंडली फाइट से नए समीकरण बनाए जाएंगे। यूपीए ने पेट्रोलियम पदार्थों के दाम घटाकर इसकी शुरूआत कर दी है। मंदी से निपटने के लिए रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट कम किए जाने के बाद कर्ज की दरें और सस्ती कर दी जाएंगी। संदेश होगा। ऋण लो और धंधा शुरू कर दो। चार साल बाद हो सकता है कि इसे माफ कर दिया जाए। कागजों पर महंगाई मार्च-अप्रैल तक नहीं बढ़ने दी जाएगी। मुंबई ने केंद्र का जनवरी-फरवरी में लोकसभा चुनाव का प्लान फेल कर दिया है। नहीं तो अगले बजट में कुछ और नए टैक्स लगना तय था।
फिर क्या हमें मुंबई के धमाके याद रह पाएंगे। खूब सोचिए। जवाब नहीं में आएगा। हम देश को आजादी दिलाने वालों को भी तो भूल ही गए हैं। रस्म अदायगी जरूर करते रहते हैं। क्या करेंगे। हर आदमी जो पालिटिकल हो गया है। हो सकता है कि नेतागण इसे चुनावी मुद्दा बनाने से बाज न आएँ।

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

हां, अमेरिका ने जब देखा की उनके क्षत्रप (सोनिया और मनमोहन) मुस्किल मे पड गए है तो फिर मदत के लिए थोडी नौटंकी कर डाला। वैसे दक्षिण एसिया मे द्वन्द फैलाने तथा आतंकवाद फैलाने मे सब से बडा हाथ अमेरिका-बेलायत का हीं है। जो दिखता है वह होता नही है। जिनको दिखता है, वह चाह कर भी masses को सत्य नही दिखा पाते - यह विडम्बना हीं है।

बेनामी ने कहा…

There is no harm in becomming political. In fact it is simple political gimmic to tell the people not to become political. It is the trauma of the indian democact that the person who was involved in politics throughout his life is telling people not to become political just because the politics become bad. while in reality he is responsible for this "badness" of politics. But the middle class mentality does'nt able to recognize this fact and falla in prey of these politicians and starts hate politics which decides everything of his life.
remember the great philospher aristotal- Hate bad politics, not politics. so don't hate politics. hate bad politics and politicians.
thanks to mr. Mishrs for writing such type of thought provoking articles(?)... or bloticles. Keep going.
PS unable to write in hindi and sorry for that.