सोमवार, 30 जुलाई 2012
हम न समझे थे बात इतनी सी...
हम न समझे थे बात इतनी सी...
फेसबुक का चेहरा बहुत दिन देख लिया। पुराने दोस्त भी बहुत मिल गए। अब फिर ब्लाग पर वापसी की तैयारी है। दरअसल, फेसबुक पर गंभीर बहस की गुंजाइश कम लगती है। ज्यादातर मामलों में तो लगता है कि सब अपने-अपने फोटो के साथअपना प्रचार कर रहे हैं। सभी अपनी-अपनी फ्रेंड लिस्ट बढ़ाने में जुटे हैं। मानो, जिसके जितने दोस्त,वह उतनी ही बड़ा सरोकारी और जानकार।
दूसरी तरफ वास्तविकता यह है कि सामाजिक सरोकार, राजनीतिक परिवर्तन और अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम पर सतही चर्चा से काम नहीं चलता। ये सतत चिंतन-मंथन का प्रक्रिया है।
माना कि फेसबुक आसानी से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने का साधन है, लेकिन ये तेजी जितनी जल्दी जिज्ञासा जगाती है, उतनी ही जल्दी से उसे खत्म भी कर देती है।
ब्लाग उन लोगों के लिए है, जो कुछ विचार रखते हैं। उनके पास एक सोच है और वे किसी मुद्दे पर बहस चाहते हैं। इस बहस को कोई दिशा देना चाहते हैं।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें