श्री राम जन्म भूमि-बाबरी मसजिद यानी विवादास्पद ढांचा यानी छह दिसंबर,1992 के अयोध्या कांड पर भाजपा सांसद अरुण शौरी का एक बयान बहुत कुछ कहता है। उनका कहना कि 1990-92 में अयोध्या मसले को लेकर जैसा माहौल (गरमाया नहीं कहा) बना था, वैसा फिर संभव नहीं है। शौरी भाजपा को कटी पतंग भी कह चुके हैं, लेकिन बतौर पत्रकार इन्होंने ही तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव के हवाले से अरे भाई वहां (अयोध्या में) मसजिद है ही कहां शीर्षक से एक एक्सक्लूसिव खबर छापी थी।
शौरी के मौजूदा बयान का क्या मतलब निकाला जाए। पार्टी के कार्यकर्ता समझ नहीं पा रहे हैं। खासतौर वे लोग, जो छह दिसंबर को राष्ट्रीय गौरव का दिन मानते रहे हैं। भाजपा में अयोध्या को लेकर लाल कृष्ण आडवाणी से लेकर विहिप के अशोक सिंघल और शिवसेना के बाल ठाकरे तक के जो बयान आ रहे हैं, उनसे लगता है कि इनमें से किसी ने संत तुलसीदास की श्री राम चरित मानस नहीं पढ़ी है। इन्हें नहीं मालूम कि अयोध्या कांड के बाद अरण्य कांड आता है। इसका मतलब है कि भटको, विचरण करो। अर्थात सत्य की तलाश करो। वैसे भाजपा पर यह बात सच बैठ रही है। अयोध्या कांड के (खल)नायक कल्याण सिंह छह दिसंबर, 1992 के बाद हिंदू स्वाभिमान के प्रतीक बन गए थे। तब तक वह आम राय से चलते थे। बाद में वह भटक गए। उनके लिए एक ही राय (बताना जरूरी है क्या)अहम हो गई। सपा से निकाले जाने के बाद तो कल्याण एक जाति के भी गौरव नहीं रह गए लगते हैं। आडवाणी ने भी जिन्ना के मुद्दे पर धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ना चाहा था, अब कहां हैं। अब लोग उनको हेय पुरुष मानने लगे हैं।
भाजपा के साथ लगातार चल रहे घटनाक्रम से लगता है कि भाजपा को अभी किष्कंधा कांड देखना है। भाजपाइयों को सुंदरकांड का पाठ करना होगा। लंका कांड यानी रावण(वक्त के साथ बदलते रहते हैं। आप अनुमान लगाएं और बताएं )का बध भाजपा के लिए अभी बहुत दूर है। सभी को मालूम है कि लंका कांड बगैर राम राज्य की कल्पना साकार नहीं होगी।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें