बीते करीब एक सप्ताह से मेरी चिंता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। चिंता भी अकेले की होती तो कोई बात नहीं। सच, किसी से भी नहीं कहता। लेकिन काफी चिंतन-मंथन के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा हूं। पोस्ट लिखने का मकसद भी यही है। कारण, किताबों में पढ़ा है कि जब समझ में आना बंद हो जाए, तो कुछ भले लोगों के साथ चरचा कर लेनी चाहिए।
अब आते हैं चिंता के पहलुओं पर। हुआ यह कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमत्री आदरणीय बहन जी कुमारी मायावती जी ने प्रधानमंत्री ड. मनमोहन सिंह को दो चिट्ठियां लिखी हैं। दोनों पत्र उन्होंने पूर्व केंद्रीय श्रम मंत्री के चंद्रशेखरराव को केंद्र सरकार द्वारा आंध्र प्रदेश से अलग कर तेलंगाना राज्य बनाने के आश्वासन के बाद लिखे हैं। पहले पत्र में उन्होंने बुंदेलखंड और हरित प्रदेश बनाने के लिए पत्र लिखा, जबकि दूसरे पत्र में उन्होंने पूर्वांचल की मांग की। मेरे सामने संकट यह है कि मैं तीनों नए राज्यों वाले प्रस्तावित जिलों में नहीं आता हूं। मेरा गृह जनपद फर्रुखाबाद है। यहां के बारे में एक कहावत है- खुल्ला खेल फरक्खावादी-। इस वजह से ही मैं यह लिख भी रहा हूं।
बहन जी से मैं जानना यह चाहता हूं कि मेरा जिला अब किस प्रदेश में रहेगा। तीन नए राज्यों में तो है नहीं। क्या इसका मतलब यह है कि उत्तर प्रदेश के चार टुकड़े होंगे। बहन जी, लगे हाथ कृपया यह भी बता दें कि क्या आपकी उत्तर प्रदेश का नाम भी तो बदलने की योजना नहीं है। इस प्रदेश की जनता ने आपको चार बार सीएम बनाया है, तो आपको इसे चार टुकड़ों में बांटने का हक है। शायद आप भूल गईं कि बुंदेलखंड की तरह से यूपी में बरेली मंडल वाले इलाके को रुहेलखंड भी कहा जाता है। यहां कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ कि वह अलग राज्य की मांग उठाता। आपको इसीलिए याद भी नहीं रहा होगा। चलो छोड़िए। आप विधानसभा में इसके लिए भी प्रस्ताव पारित करवा देना। वहां तो आपका बहुमत है। जब तक आप यह प्रस्ताव लाएं, तब तक शायद विधान परिषद में भी आपकी सीटें बढ़ जाएंगी। सारी विघ्न-बाधाएं खत्म हो जाएंगी। हां, आप दूरंदेशी हैं, सो इन राज्यों की नई राजधानियों का जिक्र करना मत भूलिएगा। लखनऊ- जिसके बारे में कहा जाता था कि लखनऊ हम पर फिदा, हम फिदा ए-लखनऊ। अब कहीं का रहेगा या नहीं। यहां की भूलभुलैया, इमामवाड़े की कौन सुध लेगा। विधानसभा भवन में तो आप कुछ वे मूर्तियां लगवा देना, जो अंबेडकर पार्क में लगने से रह गई हों। इन प्रतिमाओं को लखनऊ आने वाला, रहने वाला हर आदमी जरूर देखेगा, क्यों ये शहर के बीचोंबीच है। गोमती नगर जाने वाले सभी रास्ते इधर से ही जाते हैं। लेकिन आपको सलाह देने के चक्कर में एक बात तो भूल ही गया कि बुंदेलखंड के लिए आपने मप्र के भइया सीएम शिवराज सिंह चौहान से बात कर ली है या नहीं। मैं समझता हूं पूर्वांचल में आपने कुछ बिहार के भी जिले शामिल किए हैं, तो बिहारी बाबू नीतीश कुमार से आपकी बात हो ही गई होगी।
चलिए अब आखिरी, लेकिन महत्वपूर्ण बात करते हैं। अभी आपकी करीब ढाई साल की सरकार (मंशा ठीक समझते हुए इसे कार्यकाल समझा जाए)बची है। आपके पास बहुमत है। मान लीजिए, केंद्र सरकार ने आपसे पंगा नहीं लिया (लेगी भी नहीं। आप उसे समर्थन जो दे रही हैं। हालांकि मुलायम सिंह के साथ केंद्र का प्यार उतना नहीं है ), तो नए राज्य बन जाएंगे। दो में थोड़ी दिक्कत हो सकती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश (आपने हरित प्रदेश का प्रस्ताव कैसे कर दिया, समझ से परे है। यह तो रालोद के सब कुछ और आपको पानी पी-पीकर कोसने वाले चौधरी अजित सिंह का मुद्दा रहा है। ब्रज प्रदेश की मांग बहुत पुरानी है। आप इसे उठाकर (चुरा नहीं कहा मैंने)फिर गरमा सकती थीं। इससे सर्वजन की सरकार का आधार और मजबूत हो सकता था। इससे मथुरा और अलीगढ़ इलाकों में लोग राधे-राधे की जगह आपके जयकारे लगा सकते थे। अभी वक्त है। इस पर जरूर सोचिएगा।
एक बात और। यह 80 लोकसभा सीटों और 403 विधानसभा सीटों वाले उप्र (आपकी मानी गई तो फिलहाल)के विभाजन के बाद आप कहां विराजमान होंगी। विस में मौजूदा संख्या बल के हिसाब से तो चारों राज्यो में आपकी सरकार होगी। अगर आप लखनऊ में ही रहकर जनसेवा करना चाहती हैं,तो आपके कौन से विश्वस्त दूसरे राज्यों में नीला झंडा फहराएंगे। यह गोपनीय बात है, लेकिन पब्लिक जानना चाहती है। क्या बांदा वाले मंत्री जी बुंदेलखंड जाएंगे। अभी-अभी जीत कर फिर लाल बत्ती पाने वाले क्या पूर्वांचल संभालेंगे। पश्चिमी उप्र तो आपका दावा मजबूत है। गौतमबुद्ध नगर तो आपका घर है। प्लीज आप जल्दी ये बताइगा। नाराज मत होइए। हम यह बात इसलिए कह रहे हैं कि भरोसा नहीं लोग कब कहने लगें- दिल के टुकड़े-टुकड़े करके मुसकराते चल दिए...। आगे नहीं लिखूंगा। माफी मांगनी पड़ सकती है।
मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
सोमवार, 7 दिसंबर 2009
अब अरण्य कांड की बात करो...
श्री राम जन्म भूमि-बाबरी मसजिद यानी विवादास्पद ढांचा यानी छह दिसंबर,1992 के अयोध्या कांड पर भाजपा सांसद अरुण शौरी का एक बयान बहुत कुछ कहता है। उनका कहना कि 1990-92 में अयोध्या मसले को लेकर जैसा माहौल (गरमाया नहीं कहा) बना था, वैसा फिर संभव नहीं है। शौरी भाजपा को कटी पतंग भी कह चुके हैं, लेकिन बतौर पत्रकार इन्होंने ही तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव के हवाले से अरे भाई वहां (अयोध्या में) मसजिद है ही कहां शीर्षक से एक एक्सक्लूसिव खबर छापी थी।
शौरी के मौजूदा बयान का क्या मतलब निकाला जाए। पार्टी के कार्यकर्ता समझ नहीं पा रहे हैं। खासतौर वे लोग, जो छह दिसंबर को राष्ट्रीय गौरव का दिन मानते रहे हैं। भाजपा में अयोध्या को लेकर लाल कृष्ण आडवाणी से लेकर विहिप के अशोक सिंघल और शिवसेना के बाल ठाकरे तक के जो बयान आ रहे हैं, उनसे लगता है कि इनमें से किसी ने संत तुलसीदास की श्री राम चरित मानस नहीं पढ़ी है। इन्हें नहीं मालूम कि अयोध्या कांड के बाद अरण्य कांड आता है। इसका मतलब है कि भटको, विचरण करो। अर्थात सत्य की तलाश करो। वैसे भाजपा पर यह बात सच बैठ रही है। अयोध्या कांड के (खल)नायक कल्याण सिंह छह दिसंबर, 1992 के बाद हिंदू स्वाभिमान के प्रतीक बन गए थे। तब तक वह आम राय से चलते थे। बाद में वह भटक गए। उनके लिए एक ही राय (बताना जरूरी है क्या)अहम हो गई। सपा से निकाले जाने के बाद तो कल्याण एक जाति के भी गौरव नहीं रह गए लगते हैं। आडवाणी ने भी जिन्ना के मुद्दे पर धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ना चाहा था, अब कहां हैं। अब लोग उनको हेय पुरुष मानने लगे हैं।
भाजपा के साथ लगातार चल रहे घटनाक्रम से लगता है कि भाजपा को अभी किष्कंधा कांड देखना है। भाजपाइयों को सुंदरकांड का पाठ करना होगा। लंका कांड यानी रावण(वक्त के साथ बदलते रहते हैं। आप अनुमान लगाएं और बताएं )का बध भाजपा के लिए अभी बहुत दूर है। सभी को मालूम है कि लंका कांड बगैर राम राज्य की कल्पना साकार नहीं होगी।
शौरी के मौजूदा बयान का क्या मतलब निकाला जाए। पार्टी के कार्यकर्ता समझ नहीं पा रहे हैं। खासतौर वे लोग, जो छह दिसंबर को राष्ट्रीय गौरव का दिन मानते रहे हैं। भाजपा में अयोध्या को लेकर लाल कृष्ण आडवाणी से लेकर विहिप के अशोक सिंघल और शिवसेना के बाल ठाकरे तक के जो बयान आ रहे हैं, उनसे लगता है कि इनमें से किसी ने संत तुलसीदास की श्री राम चरित मानस नहीं पढ़ी है। इन्हें नहीं मालूम कि अयोध्या कांड के बाद अरण्य कांड आता है। इसका मतलब है कि भटको, विचरण करो। अर्थात सत्य की तलाश करो। वैसे भाजपा पर यह बात सच बैठ रही है। अयोध्या कांड के (खल)नायक कल्याण सिंह छह दिसंबर, 1992 के बाद हिंदू स्वाभिमान के प्रतीक बन गए थे। तब तक वह आम राय से चलते थे। बाद में वह भटक गए। उनके लिए एक ही राय (बताना जरूरी है क्या)अहम हो गई। सपा से निकाले जाने के बाद तो कल्याण एक जाति के भी गौरव नहीं रह गए लगते हैं। आडवाणी ने भी जिन्ना के मुद्दे पर धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़ना चाहा था, अब कहां हैं। अब लोग उनको हेय पुरुष मानने लगे हैं।
भाजपा के साथ लगातार चल रहे घटनाक्रम से लगता है कि भाजपा को अभी किष्कंधा कांड देखना है। भाजपाइयों को सुंदरकांड का पाठ करना होगा। लंका कांड यानी रावण(वक्त के साथ बदलते रहते हैं। आप अनुमान लगाएं और बताएं )का बध भाजपा के लिए अभी बहुत दूर है। सभी को मालूम है कि लंका कांड बगैर राम राज्य की कल्पना साकार नहीं होगी।
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